चरचा आरओ में रविवार ड्यूटी की मनमानी व्यवस्था को लेकर श्रमिकों में भारी नाराजगी



चरचा काॅलरी कोरिया। एसईसीएल बैकुंठपुर क्षेत्र के चरचा माइन आरओ में रविवार ड्यूटी की लिस्ट बनाने के मामले में प्रबंधन द्वारा मनमानी रवैया अपनाए जाने को लेकर श्रमिकों में व्यापक आक्रोश फैल हुआ है। कामगारों का कहना है कि प्रबंधन आवश्यकतानुसार नहीं, बल्कि अपनी सुविधानुसार ड्यूटी शेड्यूल तैयार कर रहा है। जहां असल में कामगारों की सबसे अधिक आवश्यकता होती है, वहां ड्यूटी नहीं लगाई जाती, जबकि कई अंडर मैनेजर बेवजह विभिन्न स्थानों पर तैनात रहते हैं। यह स्थिति न केवल कार्यप्रणाली में विघ्न डाल रही है, बल्कि श्रमिकों की कठिनाइयों में भी वृद्धि कर रही है।

वहीं वरिष्ठ अधिकारी खदान के भीतर जाकर अंडर ग्राउंड श्रमिकों का क्लास लेने की बजाय केवल प्रबंधन कार्यों में ही लिप्त रहते हैं। इस कारण कार्य स्थल पर काम का सही निरीक्षण नहीं हो पाता और समस्याएं अनदेखी बनी रहती हैं। श्रमिकों का सवाल है कि क्या इससे कंपनी को कोई वास्तविक लाभ पहुंच रहा है, या फिर यह केवल प्रबंधन द्वारा खर्च कटौती और स्वार्थपूर्ति की चाल है।

अधिक चिंता की बात यह है कि प्रबंधन के इस रवैये में कुछ संगठन नेता भी शामिल बताए जा रहे हैं। कामगारों का आरोप है कि वर्तमान में चरचा आरओ में सभी प्रमुख संगठन नेताओं की प्रबंधन के प्रति चापलूसी चल रही है। रविवार की ड्यूटी को लेकर स्वयं संगठन नेता प्रबंधन से व्यक्तिगत रूप से विनती करते पाए जा रहे हैं, जिससे यह स्थिति और भी विवादास्पद बन गई है।

श्रमिक संगठन की भूमिका पर भी सवाल खड़ा हो चुका है। कामगारों का कहना है कि संगठन नाम मात्र के हैं, जिनका असली उद्देश्य कामगारों के हित की रक्षा नहीं, बल्कि प्रबंधन के साथ मिलकर अपनी स्वार्थपूर्ण रीतियां चलाना बन चुका है। यदि समय रहते श्रमिक नेता सही दिशा में कदम नहीं उठाते हैं, तो कामगार मजबूर होकर सड़कों पर संघर्ष करने के लिए विवश होंगे।

इस गंभीर समस्या को लेकर क्षेत्रीय महाप्रबंधक मोन साधे हुए हैं जिससे सह क्षेत्र प्रबंधक व खान प्रबंधक अपनी मनमानी करने से बाज नहीं आ रहे है।जो मन करता है वह काम कर रहे हैं। जिससे श्रमिको में ज्यादा नाराजगी देखने को मिल रहा है।

श्रमिकों ने चेतावनी दी है कि अब उन्हें और उपेक्षा बर्दाश्त नहीं होगी। संगठन के नामधारी नेताओं को अपने कर्तव्य का एहसास कराते हुए कामगार हित में ठोस कदम उठाना होगा, नहीं तो आने वाले समय में यह संगठन केवल नाम मात्र का रहेगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अब सभी नेताओं को सबक सिखाने की बारी आ गई है ताकि कामगारों के अधिकार सुरक्षित रह सकें।

अधिकारी-पार्टी और मजदूर विरोधी नीतियों पर बढ़ रहा असंतोष

प्रबंधन द्वारा अधिकारियों के लिए भव्य पार्टी का आयोजन अफसर क्लब में रविवार को करने की व्यवस्था की जा रही है, जबकि पीएचडी श्रेणी के 8 से 10 कामगारों को अलग-अलग क्लबों में भेजा जाना सामान्य प्रथाओं के विपरीत और असमान माना जा रहा है। यह स्थिति स्पष्ट रूप से यह संकेत दे रही है कि प्रबंधन श्रमिक विरोधी नीतियों को लागू करने में किसी भी हद तक जाने से बाज नहीं आ रहा है।
स्थानीय सूत्र बताते हैं कि कामगारों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार, उनके हितों की अनदेखी तथा मनमानी फैसलों के चलते क्षेत्र में असंतोष की स्थिति उत्पन्न हो रही है। कामगार वर्ग का मानना है कि आने वाला समय इस समस्या के लिए बीसफोटक (संघर्षात्मक) साबित हो सकता है। यदि प्रबंधन ने अपने रवैये में सुधार नहीं किया तो मजदूर सड़कों पर उतरकर आंदोलन करने के लिए मजबूर हो सकते हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस स्थिति की पूरी जिम्मेदारी प्रबंधन पर होगी, क्योंकि वे कामगारों की आवश्यकताओं और उनके संवैधानिक अधिकारों की उपेक्षा कर रहे हैं। इसके साथ ही यह भी स्पष्ट हो रहा है कि संगठनात्मक नीति शाही दमन की दिशा में बढ़ रही है, जो न केवल कामगारों के सामाजिक व आर्थिक हितों के खिलाफ है, बल्कि उद्योग के दीर्घकालिक हितों के भी विपरीत सिद्ध होगी।

ऐसी स्थिति में प्रशासन और संबंधित विभाग से यह अपेक्षा की जा रही है कि वे समय रहते हस्तक्षेप कर प्रबंधन को जिम्मेदार ठहराएं तथा कार्यस्थल पर न्यायसंगत व्यवस्था सुनिश्चित कराएं, ताकि भविष्य में किसी भी प्रकार का अप्रिय संघर्ष टाला जा सके।

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