अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत बड़ा फैसला – मजहर खान को छह माह की सजा व अर्थदंड


जिला कोरिया। न्यायालय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, बैकुण्ठपुर, कोरिया (छत्तीसगढ़) के विशेष न्यायाधीश श्री आशीष पाठक ने विशेष आपराधिक प्रकरण क्रमांक 17/2021 राज्य बनाम मजहर खान के उपर शुक्रवार को एक अहम फैसला सुनाया। न्यायालय ने अभियुक्त मजहर खान को दोषी करार देते हुए विभिन्न धाराओं के तहत छह माह के कारावास और अर्थदंड से दंडित किया है।

प्रकरण के अनुसार, प्रार्थिया चम्पाकली दिवाकर, जो उस समय खाद्य निरीक्षक के पद पर बैकुण्ठपुर में पदस्थ थीं, दिनांक 19 जुलाई 2020 को ग्राम खरवत में राजकुमारी महिला स्वसहायता समूह की उचित मूल्य दुकान का निरीक्षण करने गई थीं। निरीक्षण उपरांत जब वह शाम लगभग 5 बजे खरवत रेलवे पुल के पास पहुँचीं, तभी अभियुक्त मजहर खान एवं एक अन्य व्यक्ति ने स्प्लेण्डर मोटरसाइकिल से पहुंचकर उनका रास्ता रोक लिया।

आरोप के अनुसार, मजहर खान ने प्रार्थिया को जातिसूचक शब्द चमारिन कहते हुए मां-बहन की अश्लील गालियां दीं, और उसके विरुद्ध दर्ज केस को वापस लेने, हाईकोर्ट में जमानत का विरोध न करने तथा समझौता करने के लिए दबाव बनाया। केस वापस नहीं लेने पर अभियुक्त ने जान से मारने, बच्चों को गायब कराने और नौकरी समाप्त करवाने की धमकी दी।

प्रार्थिया की शिकायत पर थाना अजाक बैकुण्ठपुर में अपराध क्रमांक 26/2020 पंजीबद्ध किया गया। इस मामले में धारा 294, 506, 509, 341, 34 भारतीय दंड संहिता तथा धारा 3(1)(द), 3(1)(घ), 3(2)(क) अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के तहत अपराध दर्ज किया गया था।

साक्ष्य और सुनवाई के उपरांत न्यायालय ने अभियुक्त मजहर खान को दोषी पाया और धारा 294 व 341 भा.दं.सं. के तहत ₹500-₹500 का अर्थदंड, धारा 506 भा.दं.सं. के तहत 6 माह का कारावास व ₹500 अर्थदंड, तथा धारा 3(1)(द), 3(1)(घ), 3(2)(क) के तहत 6-6-6 माह का कारावास व ₹500-₹500-₹500 का अर्थदंड का आदेश दिया।

विशेष लोक अभियोजक ने पैरवी के दौरान तर्क दिया कि समाज में अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के प्रति बढ़ते अत्याचारों को ध्यान में रखते हुए अभियुक्त का कृत्य क्षम्य नहीं है। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार के प्रयासों के बावजूद वे आज भी असुरक्षित हैं। उन्हें कई नागरिक अधिकारों से वंचित किया जाता है, अपमान और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। शिक्षा और जागरूकता के प्रसार से जब वे अपने अधिकारों का दावा करने लगते हैं, तो समाज के कुछ वर्ग इसे स्वीकार नहीं करते, जिससे उनके सम्मान और गरिमा को ठेस पहुँचती है।

न्यायालय ने अभियोजन के तर्कों को स्वीकार करते हुए स्पष्ट किया कि जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न जैसी घटनाएं संविधान के मूल मूल्यों के विरुद्ध हैं, तथा समाज में समानता और सम्मान की भावना बनाए रखने के लिए ऐसे अपराधों पर कठोर कार्रवाई आवश्यक है।

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